ये कहानी है रमेश के खर्चो का

एक रमेश है…
जो दिन-भर अपने मोबाइल के खर्चे से परेशान रहता है।
घर-परिवार में तनाव, टेंशन और चिंता—
क्योंकि खर्चा कम नहीं होता और आमदनी बढ़ती नहीं।
हर तरफ बस खर्च ही खर्च।

दूसरी कहानी संगीता के कमाई का

और एक संगीता है…
जो अपने पति और बच्चों के साथ खुश रहती है।
क्यों?
क्योंकि उसके लिए मोबाइल खर्च नहीं… आमदनी का ज़रिया है! उसने ऐसा सिस्टम अपनाया है जिससे उसका हर दिन पिछली बार से बेहतर होता है। वो मोबाइल से कमाती है, मोबाइल से दूसरों को कमाना सिखाती है, और कोई अतिरिक्त काम नहीं— उसकी आमदनी सीधे मोबाइल से होती है।

इसलिए उसके लिए मोबाइल बोझ नहीं, उसकी लाइफ बदलने वाली मशीन है। अब फैसला आपका— आप रमेश की तरह मोबाइल का बिल भरकर परेशान रहना चाहते हैं, या संगीता की तरह मोबाइल को कमाई का साधन बनाकर अपनी और अपने परिवार की जिंदगी बदलना चाहते हैं? ज़िंदगी आपकी… ज़िम्मेदारी भी आपकी। सीखिए, कमाइए, और आगे बढ़िए।

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